क्या आप कभी हवाई जहाज में बैठे हैं? अगर नहीं, तो इन्तजार किस बात का कर रहे हो भाई । आजकल तो हवाईयात्रा बहुत ही सस्ती है । अगर हाँ, तो आपने कभी सोचा है कि हवाई जहाज़ की खिड़कियों में कोने क्यों नहीं होते? वो खिड़कियां चौकोर क्यों नहीं होतीं?
1950 में हवाई जहाज़ की खिड़कियां चौकोर हुआ करती थीं। पर 1953 में दो हवाई जहाज़ क्रैश हो गये थे और कुछ लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था। इस जहाज़ के क्रैश होने की वज़ह चौकोर खिड़कियां मानी गयी थीं। हवाई जहाज़ में ‘चौकोर कोने’ होने की वज़ह से खिड़कियों के कोनों पर प्रेशर का कनसेंट्रेशन बढ़ता है जिससे खिड़कियां कमज़ोर हो जाती हैं और चटक सकती हैं। इसलिए खिड़कियों को थोड़ा घूमावदार बनाया जाता है जिससे प्रेशर विपरीत दिशा में पड़ता है और खिड़कियों के चटकने की सम्भावना नहीं रहती है।
इस ब्लॉग के निर्माता हिमांशु सक्सैना हैं जो बुलन्दशहर जिले के निवासी हैं | इन्हें अपनी मातृ भाषा हिन्दी से काफी प्रेम है इसलिये इन्हे हिन्दी में लिखने का शोक भी है | लोगो के दिमाग में आज भी यही बात जुबान पर रहती है कि जो कुछ भी है वो इंग्लिश से है, इस बात को गलत साबित करने के उद्देश्य से ही इन्होने इस ब्लॉग का निर्माण किया है |
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