जल बचाओ पर निबंध (स्लोगन) पानी बचाओ जीवन बचाओ – Essay on Save Water in Hindi
जल प्रकृति की वो अनोखी देन है जिसके बिना सम्पूर्ण जगत के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
पेयजल की मात्रा में भारी गिरावट चिंतन का विषय होने के साथ साथ इसके प्रति जागरूक होना भी बहुत जरुरी हो गया है.
अब वो वक़्त ज्यादा दूर नहीं जब शहरी इलाकों में लोग और जानवर साफ़ पेयजल के लिए तरस जायेंगे.
बाज़ारों में साफ़ पानी की कीमत इतनी ज्यादा हो जाएगी कि गरीब लोग तो बिना पानी के ही गुजरा करने पर मजबूर हो जायेगे.
इंसान के लगातार विज्ञान परीक्षण उसको तकनीक रूप से सुद्र्ण तो बना रहे हैं लेकिन उसी गति से हम प्रकृति के संसाधनों का भी हास कर रहे हैं.
कोई भी वैज्ञानिक या संस्था अपनी तकनीक और विज्ञान को प्रकृति के सुधार की ओर अग्रसर नहीं कर रहा.
हर किसी को अपने बिज़नेस और पैसे की भूख ने इतना अँधा कर दिया है कि खुद के पैर पर लगने वाली कुल्हाड़ी उसको दिखाई ही नहीं दे रही.
अगर वक़्त रहते हम ना रुके तो वो समय ज्यादा दूर नहीं जब प्रकृति खुद इंसानों से इसका बदला लेगी और अगर ऐसा हुआ…
तो इंसान के पास अपना मुँह छुपाने की भी जगह नहीं मिलेगी.
जल व्यर्थ या बर्बादी के कुछ उदाहरण
1). शहरों की बड़ी- बड़ी फैक्ट्रियों और कारखानों में एक दिन में कई टन लीटर पानी उपयोग में लिया जाता है.
यह पानी सीधे जमीन से निकाला जाता है और नालों में गन्दा करके छोड़ दिया जाता है.
ये पानी इतना ज्यादा दूषित होता है कि अगर इस पानी को खेतों में छोड़ दिया जाए तो यक़ीनन ही पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी.
2). घरों में लगाए गए सबमर सिबल के पंप बहुत ज्यादा दुखदायी हैं.
ये रोजाना इतना ज्यादा पानी बहाते हैं कि अगर उतना पानी नल से निकला जाए तो पूरा दिन लग जायेगा….और ये इतना पानी सिर्फ कुछ ही घंटे में बहा देते हैं.
3). वैसे तो अगर देखा जाए जब किसान खेतों में पानी लगाते हैं तो पानी फिर से जमीन के अंदर ही चला जाता है.
लेकिन जब खेतों में कीटनाशक दवाइयों का उपयोग किया जाता है तो वो पानी जहरीला होकर जमीन के निचे जाता है जिससे जमीन के अंदर का पानी भी पीने योग्य नहीं रह जाता.
पानी की बरबादी रोकने के उपाय Best Essay on Save Water in Hindi
1). घरेलु जल बचाव
• डायरेक्ट सबमर सिबल पंप का प्रयोग ना करें. किसी बर्तन में पानी लेकर ही उसको उपयोग में लाएं.
• टूटी हुई पानी की टंकी जिसमें से लगातार दिन भर पानी टपकता रहता है उसकी मरम्मत जरूर करवाएं.
• कपडे और बर्तन धोते समय टंकी को खुला ना छोड़े… किसी बाल्टी में पानी भर कर उपयोग करें.
• स्नान करने के लिए आधुनिक शॉवर का प्रयोग कम ही करें.
• गाडी धोते समय टंकी के पाइप का प्रयोग करने से बचे…बाल्टी का इस्तेमाल करें.
2). पौधे लगाना
जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके पौधे लगाने चाहिए और साथ ही पेड़ों के कटान पर भी रोक लगानी चाहिए.
वृक्ष वर्षा कराने में सहायक होते हैं और साथ ही वायुमंडल का तापमान भी नियंत्रण में रहता है.
3). वनों की कटाई पर प्रतिबन्ध
शहरी इलाकों में लगातार तापमान बढ़ने का एक कारण यह भी है कि फैक्ट्रियों के लिए बड़े-बड़े वनों में आग लगा दी जाती है जिससे सभी छोटे बड़े पेड़- पौधे नष्ट हो जाते हैं.
पेड़ों के कटान को लेकर सरकार को कठोर क़ानून पास करने चाहिए, नहीं तो पेयजल की समाप्ति में ज्यादा समय नहीं लगेगा.
4). सबमर सिबल पम्पों में तकनीकी का उपयोग करके एक मीटर लगाना चाहिए, जिसमें हर घर के एक दिन की पानी की लिमिट को तय करना चाहिए.
अगर लिमिट से ज्यादा पानी बहाया गया तो उसका टैक्स कटना चाहिए.
ऐसा करने से लोगों के मन में भी जागरूकता पैदा होगी और ये काफी अच्छा रास्ता हो सकता है जल के संरक्षण के लिए.
5). फैक्ट्रियों से निकलने वाला दूषित जल सीधे जमीन में चला जाता है, जिससे सारा पानी भी दूषित हो जाता है.
इस पानी को नहर या नालों में छोड़ने से पहले इसको साफ़ करने के यंत्र लगाने चाहिए, जिससे साफ़ पानी ही नहर- नदी में गिरे.
6). फैक्ट्रियों में शुद्ध पेयजल के उपयोग पर पाबंदी लगनी चाहिए जिससे शुद्ध जल का बचाव हो सके.
7). खेतों में प्रयुक्त रासायनिक खाद का उपयोग ना करें, जैविक खाद का प्रयोग करें.
रासायनिक खाद से खेत की मिटटी के संपर्क में आने वाला पानी जहरीला हो जाता है जो बहुत ही हानिकारक होता है.
गोबर से बनी खाद मिटटी की उर्वरा शक्ति को ज्यादा समय तक बनाये भी रखती है.
8). ऐसा काफी जगहों पर देखा जाता है कि लोग सार्वजनिक स्थानों पर पानी की टंकियों को खुला छोड़ देते हैं और पानी व्यर्थ बहता रहता है.
ऐसे स्थानों पर टंकियों को आटोमेटिक कराना चाहिए जिससे पानी खुद ही बहना बंद हो जाए.
9). बारिश का पानी अगर हम इकट्ठा करें तो काफी समस्या का समाधान हो सकता है.
फैक्ट्रियों और घरों में सफाई के लिए और अन्य प्रकार के कामों के लिए वर्षा के जल को इकट्ठा करके उपयोग में लाना चाहिए.
10). सरकार को लोगों तक जल संरक्षण के मुद्दे को पहुँचाने के लिए सेमिनार और सभाएँ करनी चाहिए… क्योंकि अगर लोग ही जागरूक नहीं होंगे तो अकेले सरकार कुछ नहीं कर सकती.
इस ब्लॉग के निर्माता हिमांशु सक्सैना हैं जो बुलन्दशहर जिले के निवासी हैं | इन्हें अपनी मातृ भाषा हिन्दी से काफी प्रेम है इसलिये इन्हे हिन्दी में लिखने का शोक भी है | लोगो के दिमाग में आज भी यही बात जुबान पर रहती है कि जो कुछ भी है वो इंग्लिश से है, इस बात को गलत साबित करने के उद्देश्य से ही इन्होने इस ब्लॉग का निर्माण किया है |
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