क्या है समान नागरिक संहिता ? What is the uniform civil code in Hindi
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा था कि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए अब तक कोई प्रयास नहीं किया गया है। जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने एक मामले के फैसले में ये टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा, देश में गोवा इसका शानदार उदाहरण है, जहां धर्म से परे जाकर समान नागरिक संहिता लागू है। यह तब है जब शीर्ष अदालत ने ही तीन मामलों में साफ तौर पर इसकी हिमायत की थी। यहां हम आपको Uniform Civil Code यानी समान नागरिक आचार संहिता के बारे में सब कुछ बता रहे हैं
भारतीय संविधान और समान नागरिक संहिता(Indian Constitution and Uniform Civil Code)
समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग ४ के अनुच्छेद ४४ में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा।सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ४२वें संशोधन के माध्यम से ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द को प्रविष्ट किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत के समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर किसी भी भेदभाव को समाप्त करना है, लेकिन वर्तमान समय तक समान नागरिक संहिता के लागू न हो पाने के कारण भारत में एक बड़ा वर्ग अभी भी धार्मिक कानूनों की वजह से अपने अधिकारों से वंचित है।
मूल अधिकारों में ‘विधि के शासन’ की अवधारणा विद्यमान है, जिसके अनुसार, सभी नागरिकों हेतु एक समान विधि होनी चाहिये। लेकिन स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अपने मूलभूत अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहा है। इस प्रकार समान नागरिक संहिता का लागू न होना एक प्रकार से विधि के शासन और संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन है।
‘सामासिक संस्कृति’ के सम्मान के नाम पर किसी वर्ग की राजनीतिक समानता का हनन करना संविधान के साथ-साथ संस्कृति और समाज के साथ भी अन्याय है क्योंकि प्रत्येक संस्कृति तथा सभ्यता के मूलभूत नियमों के तहत महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त होता है लेकिन समय के साथ इन नियमों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर असमानता उत्पन्न कर दी जाती है।
क्या छिन जाएगा लोगों का धार्मिक अधिकार?(Will the religious right of people be snuffed out?)
ऐसा नहीं है कि समान नागरिक संहिता लागू होने से लोगों को अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने का अधिकार छिन जाएगा. संविधान के अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड का पक्ष लिया गया है, लेकिन ये डायरेक्टिव प्रिंसपल हैं. यानी इसे लागू करना या न करना पूरी तरह से सरकार पर निर्भर करता है. गोवा में कॉमन सिविल कोड लागू है. दूसरी तरफ संविधान के अनुच्छेद 25 और 29 कहती हैं कि किसी भी वर्ग को अपनी धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों को मानने की पूरी आजादी है. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाने से हर धर्म के लोगों को सिर्फ समान कानून के दायरे में लाया जाएगा, जिसके तहत शादी, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामले शामिल होंगे. ये लोगों को कानूनी आधार पर मजबूत बनाएगा.
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