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Tipu sultan History in Hindi : टीपू सुल्तान हिस्ट्री इन हिंदी

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Who is Tipu Sultan in Hindi टीपू सुल्तान कौन था?

टीपू सुल्तान (1750 – 1799) कर्नाटक, भारत के तत्कालीन मैसूर राज्य के शासक थे। टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) (बंगलौर से लगभग 33 (21 मील) किमी उत्तर मे) हुआ था। उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था। उनके पिता [हैदर अली] मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे। जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। टीपू को मैसूर के शेर के रूप में जाना जाता है।

योग्य शासक के अलावा टीपू एक विद्वान, कुशल़॰य़ोग़य सैनापति और कवि भी थे। टीपू सुल्तान ने हिंदू मन्दिरों को तोहफ़े पेश किए। मेलकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए। इनमें से कई को चांदी और सोने की थाली के तोहफे पेश किए। ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुअ एक रत्न-जड़ित कप है। ननजनगुड के ही ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू ने एक हरा-सा शिवलिंग भेंट किया। श्रीरंगपटना के रंगनाथ मन्दिर को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक पेश किया |

History of Tipu Sultan in Hindi

18 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हैदर अली का देहावसान एवं टीपू सुल्तान का राज्यरोहन मैसूर कि एक प्रमुख घटना है टीपू सुल्तान के आगमन के साथ ही अंग्रेजों कि साम्राज्यवादी नीति पर जबरदस्त आधात पहुँचा जहाँ एक ओर कम्पनी सरकार अपने नवजात ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रयत्नशील थी तो दूसरी ओर टीपू अपनी वीरता एवं कुटनीतिज्ञता के बल पर मैसूर कि सुरक्षा के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा था वस्तुत:18 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू एक ऐसा महान शासक था जिसने अंग्रेजों को भारत से निकालने का प्रयत्न किया। अपने पिता हैदर अली के पश्चात 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा। अपने पिता की तरह ही वह अत्याधिक महत्वांकाक्षी कुशल सेनापति और चतुर कूटनीतिज्ञ था यही कारण था कि वह हमेशा अपने पिता की पराजय का बदला अंग्रेजों से लेना चाहता था अंग्रेज उससे काफी भयभीत रहते थे। टीपू की आकृति में अंग्रेजों को नेपोलियन की तस्वीर दिखाई पड़ती थी। वह अनेक भाषाओं का ज्ञाता था अपने पिता के समय में ही उसने प्रशासनिक सैनिक तथा युद्ध विधा लेनी प्रारंभ कर दी थी परन्तु उसका सबसे बड़ा अवगुण यह था कि वह जिद्दी और घमंडी व्यक्ति था। यही दुर्गुण उसके पराजय का कारण बना वह फ्रांसिसियों पर बहुत अधिक भरोसा करता था और देशी राजाओं कि शक्तियों को तुक्ष्य समझता था वह अपने पिता के समान ही निरंकुश और स्वंत्रताचारी था लेकिन फिर भी प्रजा के तकलीफों का उसे काफी ध्यान रहता था। अत: उसके शासन काल में किसान प्रसन्न थे वह कट्टर मुसलमान होते हुए भी धर्मान्त नहीं था वह हिन्दु, मुस्लमानों को एक नजर से देखता था बहुत बड़ा सुधारक भी था और शासन के प्रत्यक्ष क्षेत्र में सुधार लाने की चेष्टा की।

उसके चरित्र के सम्बंध में विद्वानों ने काफी मतभेद है। विभिन्न अंग्रेज विद्वानों ने उसकी आलोचना करते हुए उसे अत्याचारी और धर्मान्त बताया है। इतिहास का विलक्ष के अनुसार हैदर शायद ही कोई गलती करता था और टीपू सुल्तान शायद ही कोई काम करता था मैसूर में एक कहावत है कि हैदर साम्राज्य स्थापित करने के लिए पैदा हुआ था। और टीपू उसे खोने के लिए कुछ ऐसे भी विद्वान है जिन्होंने टीपू के चरित्र की काफी प्रशंसा की है। वस्तुत: टीपू एक परिश्रमी शासक मौलिक सुधारक और महान योद्धा था। इन सारी बातों के बावजूद वह अपने पिता के समान कूटनीतिज्ञ एवं दूरदर्शी नहीं था यह उसका सबसे बड़ा अवगुण था। इससे भी बड़ी अवगुण उसकी पराजय अगर उसकी विजय होती तो उसके चरित्र की प्रशंसा की जाती।

टीपू सुल्तान मैसूर कॆ सबसॆ महान शासक थॆ। टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) (बंगलौर से लगभग 33 (21 मील) किमी उत्तर मे) हुआ था। उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था। उनके पिता [हैदर अली] मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे। जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। टीपू को मैसूर के शेर के रूप में जाना जाता है। योग्य शासक के अलावा टीपू एक विद्वान, कुशल़॰य़ोग़य सैनापति और कवि भी थे। टीपू सुल्तान ने हिंदू मन्दिरों को तोहफ़े पेश किए। मेलकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए। इनमें से कई को चांदी और सोने की थाली के तोहफे पेश किए। ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुअ एक रत्न-जड़ित कप है। ननजनगुड के ही ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू ने एक हरा-सा शिवलिंग भेंट किया। श्रीरंगपटना के रंगनाथ मन्दिर को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक पेश किया।

1791 में रघुनाथ राव पटवर्धन के कुछ मराठा सवारों ने श्रृंगेरी शंकराचार्य के मंदिर और मठ पर छापा मारा। उन्होंने मठ की सभी मूल्यवान संपत्ति लूट ली। इस हमले में कई लोग मारे गए और कई घायल हो गए। शंकराचार्य ने मदद के लिए टीपू सुल्तान को अर्जी दी। शंकराचार्य को लिखी एक चिट्ठी में टीपू सुल्तान ने आक्रोश और दु:ख व्यक्त किया। इसके बाद टीपू ने बेदनुर के आसफ़ को आदेश दिया कि शंकराचार्य को 200 राहत (फ़नम) नक़द धन और अन्य उपहार दिये जायें। श्रृंगेरी मंदिर में टीपू सुल्तान की दिलचस्पी काफ़ी सालों तक जारी रही, और 1790 के दशक में भी वे शंकराचार्य को खत लिखते रहे। टीपू के यह पत्र तीसरे मैसूर युद्ध के बाद लिखे गए थे, जब टीपू को बंधकों के रूप में अपने दो बेटों देने सहित कई झटकों का सामना करना पड़ा था। यह सम्भव है कि टीपू ने ये खत अपनी हिन्दू प्रजा का समर्थन हासिल करने के लिए लिखे थे।

टीपू सुल्तान ने अन्य हिंदू मन्दिरों को भी तोहफ़े पेश किए। मेलकोट के मन्दिर में सोने और चांदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए। इनमें से कई को चांदी और सोने की थाली के तोहफे पेश किए। ननजनगुड के श्रीकान्तेश्वर मन्दिर में टीपू का दिया हुआ एक रत्न-जड़ित कप है। ननजनगुड के ही ननजुनदेश्वर मन्दिर को टीपू ने एक हरा-सा शिवलिंग भेंट किया। श्रीरंगपटना के रंगनाथ मन्दिर को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर-ज्वालिक पेश किया। कुछ लोगों का दावा है कि ये दान हिंदू शासकों के साथ गठबंधन बनाने का एक तरीका थे।

4 मई 1799 को 48 वर्ष की आयु में कर्नाटक के श्रीरंगपट्टना में टीपू को धोके से अंग्रेजों द्वारा क़त्ल किया गया। टीपू अपनी आखिरी साँस तक अंग्रेजो से लड़ते लड़ते शहीद हो गए। उनकी तलवार अंगरेज़ अपने साथ ब्रिटेन ले गए। टीपू की मृत्यू के बाद सारा राज्य अंग्रेज़ों के हाथ आ गया।

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