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National Integration Essay in Hindi : राष्ट्रीय एकता पर निबंध

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What is National Integration in Hindi? Essay on National Integration in Hindi

एक देश में रह रहे लोगों के बीच एकता की शक्ति के बारे में लोगों को जागरुक बनाने के लिये ‘राष्ट्रीय एकता’ एक तरीका है। अलग संस्कृति, नस्ल, जाति और धर्म के लोगों के बीच समानता लाने के द्वारा राष्ट्रीय एकता की जरुरत के बारे में ये लोगों को जागरुक बनाता है।

आपने डीडी चैनल पर राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने वाला एक देशभक्ति गीत “मिले सुर मेरा तुम्हारा” सुना होगा। भारत संस्कृति, भाषा, धर्म, जाति, लोग, भोजन और भी बहुत कुछ के संदर्भ में एक विविध राष्ट्र है। इसलिए आजादी के बाद राजनीतिक नेताओं के लिए राष्ट्रीय एकता की अवधारणा को मुख्य कार्यों में से एक थी। यह अवधारणा और भी महत्वपूर्ण बन गयी, क्योंकि 1956 में भारत में राज्यों की स्थापना भाषा के आधार पर की जाती थी। इसके अलावा भारत के अभिन्न अंग पंजाब, जम्मू और कश्मीर जैसे कुछ राज्यों ने एक अलग देश बनने के लिए कहा था। हालांकि ये भारत के अभिन्न अंग थे।

यदि हम प्राचीन भारत के इतिहास में झाँकते हैं। तो धर्म ने ही लोगों और राष्ट्र को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सामान्य निष्ठा से लोगों में आत्मीयता की भावना पैदा हुई जिससे राष्ट्र का एकीकरण करने में मदद मिली। दो मुख्य भाषाओं, संस्कृत और पाली ने भी एक ही भूमिका निभाई थी। विदेशी शासकों के आक्रमण से, देश में और अधिक धर्म और भाषाएं जुड़ गईं, जो देश में पहले से कहीं अधिक विविधता का कारण बना। ईर्ष्या की भावनाएँ और धर्म आधारित पृथक्करण ने अपने सिर को ऊपर उठाना शुरू कर दिया और देश की एकता को भंग कर दिया। ब्रिटिश शासन के तहत “फूट डालो और शासन करो” की नीति आ गयी। उन्होंने धर्म के आधार पर हिंदू और मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा कर दिया और यह भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए सबसे बड़ा झटका था। इसके साथ ही शासन करने के लिए, अमीर-गरीब, ग्रामीण-शहरी और ऊंच-नीच के बीच में मतभेद पैदा किया गया। लेकिन इन सबके बावजूद लोग एक थे और हमारी राष्ट्रीय एकता के कारण ही हमें स्वतंत्रता मिली। आजादी के बाद सरकार सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता के पक्ष में रही। भारत का संविधान विभिन्न जाति, धर्म, पंथ, जन्म स्थान आदि के बावजूद सभी लोगों को समान अवसर प्रदान करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करता रहा। हिंदी को देश की राष्ट्रीय भाषा बनाया गया। सभी प्रयासों के बावजूद अभी भी एक मतभेद बना हुआ है जो एकता की भावना को नष्ट कर रहा है। मातृभूमि के प्रति समर्पण से धर्म और भाषा की निष्ठा अधिक महत्वपूर्ण है। भाषाओं मे मतभेद, सांप्रदायिकता और क्षेत्रवाद भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए सबसे गंभीर खतरे हैं। असहिष्णुता और स्वार्थ जैसे मुद्दे भी देश की एकता के लिये बड़े खतरे के रूप में काम कर रहे हैं।

भारत में राष्ट्रीय एकीकरण को कैसे दें बढ़ावा?

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक को स्वयं को बंगाली, पंजाबी, दक्षिण भारतीय या उत्तरी भारतीय के रूप में नहीं पहचानना चाहिए। वर्तमान समय में यह पहचान देश के आधार पर न होकर पहचान राज्य, भाषा, धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर है। भारतीय होना हमारी आम पहचान है जिस पर हमें गर्व होना चाहिए। सांप्रदायिकता सबसे बड़ी चुनौती है जो हमारे देश को विभाजित करती है। ब्रिटिश शासन के दौरान सांप्रदायिकता को बहुत अधिक बढ़ावा मिला वे अपनी “फूट डालो और शासन करो” नीति के साथ देश पर शासन करना चाहते थे। 1947 के विभाजन में सांप्रदायिकता ने दोबारा अपनी बदसूरत भूमिका निभाई जिससे हजारों निर्दोष लोगों की हत्या की गई थी। इसलिए हर किसी को राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए सांप्रदायिकता और धर्म से ऊपर उठकर सोंचना चाहिए। हमें सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

हमें यह समझना चाहिए भाषा केवल संवाद करने का एक तरीका है लेकिन इसका अर्थ किसी के व्यक्तित्व को परिभाषित करना नहीं है। मेरा जन्म एक विशेष परिवार में हुआ है इसलिए मैंने उस परिवार के सभी गुणों को हासिल कर लिया है। लेकिन अगर मैं एक दूसरे परिवार और दूसरे धर्म में पैदा होता तो? मुझे हर किसी के विश्वास और भाषा का पालन करना चाहिये। आपका जन्म आपके धर्म को परिभाषित करता है न कि आप। हमें एक दूसरे की भाषा और धर्म का सम्मान करना चाहिए। हमारे संविधान द्वारा कई भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। लेकिन हम सभी केवल उसी भाषा का सम्मान करते है जो हम बोलते हैं एवं अन्य सभी भाषाओं को नजरअंदाज कर देते हैं। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें भारत में बोली जाने वाली हर भाषा का सम्मान करना चाहिए।

बच्चों को बचपन से सिखाना चाहिए कि वे भारतीय हैं, उनके अन्दर देशभक्ति की गहरी भावना को विकसित करना चाहिए।

हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसमें विभिन्न धर्म, भाषा, वस्त्र, भोजन आदि शामिल हैं। भारत में राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए, विविधता का सम्मान करना चाहिए। ये कुछ नहीं सिर्फ लोगों की मानसिकता हैं। हम सोचते हैं जिस तरीके से हमारा समाज चाहता है हम इस तरीके से सोंचे और कार्य करें। हमें सभी सामाजिक सिद्धांतों को हल करने और जाँच करने की आवश्यकता है ताकि हम सही रास्ते का अनुसरण कर सकें। शिक्षा लोगों की मानसिकता को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विद्यालयों में दी गई शिक्षा के साथ-साथ, माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन करें। माता-पिता को शिक्षा की नियमित रूप से निगरानी करने की आवश्यकता है। माता-पिता को सांप्रदायिक सौहार्द पर काम करना चाहिए और अपने बच्चों को राष्ट्रीय एकीकरण और एकता का महत्व सिखाना चाहिए। राष्ट्रीय एकीकरण वास्तव में एक सामंजस्यपूर्ण स्थिति है जो भारत के लोगों को एक साथ जोड़ती है। राष्ट्र अपने लोगों द्वारा बनाया गया है, देश के विकास के लिए सभी को एकता के साथ रहना चाहिए। राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिये भारतीय के रूप में हम सभी के पास एक समान आम पहचान होती है।

राष्ट्रीय एकता का अर्थ- राष्ट्रीय एकता की परिभाषा

लोगों में जाति, धर्म, भाषा, नस्ल आदि में विविधता का एक देश है भारत हालाँकि अंग्रेजी शासन से आजादी के लिये सामान्य क्षेत्र, इतिहास और लगातार लड़ने के प्रभाव के तहत बहुत बार एकता यहाँ भी देखी गयी है। भारत पर राज करने के लिये अंग्रेजों ने यहाँ पर कई वर्षों तक बाँटो और राज करो की नीति अपनायी। हालाँकि विभिन्न धर्म, जाति, नस्ल का होने के बावजूद भी भारतीयों की एकता ने अंग्रेजों को यहाँ से खदेड़ दिया। लेकिन आजादी के बाद अलगाव ने जगह ले ली जिसने भारत को भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया।

भारत विभिन्न धार्मिक समुदायों जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसियों की एक भूमि है। यहाँ पर राष्ट्रीय एकीकरण तभी संभव है जब सभी समुदाय एक-साथ शांतिपूर्वक रहें, एक-दूसरे समुदाय की सराहना करें, प्यार करें तथा एक-दूसरे की संस्कृति और परंपरा का सम्मान करें। हरेक समुदाय को उनके मेले, उत्सवों और दूसरे अच्छे दिनों को शांतिपूर्वक देखना चाहिये। हरेक समुदाय को एक दूसरे की मदद के साथ ही धार्मिक त्योंहारो की खुशियों को बाँटना चाहिये। किसी भी धार्मिक समुदाय को कुछ भी ऐसा बुरा नहीं करना चाहिये जो किसी दूसरे धर्म को ठेस पहुँचाये या उस धर्म में मनाही हो।

विभिन्न धर्मों के लोग अलग-अलग भाषा बोलते हैं जैसे हिन्दी, अंग्रेजी, ऊर्दू, उड़ीया, पंजाबी, बंगाली, मराठी आदि। सभी धर्मों के बीच समानता और सभी जाति के विद्यार्थीयों के लिये समान सुविधा होनी चाहिये। देश के मुख्य विकास के लिये सभी समुदायों के बराबर वृद्धि और विकास और सभी नस्लों के लोगों के बीच समानता लाने के लिये आधुनिक समय में भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की तुरंत जरुरत है। भारतीय सरकार ने इस आशा में राष्ट्रीय एकीकरण की परिषद का गठन किया है कि इसके सभी कार्यक्रमों के उद्देश्यों को पूरा करने में यहाँ रहने वाले लोग सहयोग करेंगे।

एक पहचान बनाने के लिये राष्ट्र के रहने वाले सभी लोगों का एक संघठित समूह राष्ट्रीय एकीकरण है। राष्ट्रीय एकीकरण एक खास मनोभाव है जो धर्म, जाति, भाषा या पृष्ठभूमि को बिना ध्यान दिये राष्ट्र को एक सामान संबंध में जोड़ता है। हमलोगों को खदु को भारतीय के रुप में पहचानना चाहिये ना कि किसी खास धर्म या जाति के व्यक्ति के रुप में। ये विरासत से समृध देश है हालांकि हमलोग ये नहीं कह सकते कि यहाँ लोगों में पूरी तरह से एकता है। ये देश के युवाओं में जागरुकता फैलने से ही संभव हो पायेगा। एक युवा के रुप में, हम देश का भविष्य हैं इसलिये हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना चाहिये और राष्ट्रीय एकीकरण के लिये जरुरी सभी कदम उठाने चाहिये।

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