कश्मीर का रहन-सहन पर निबंध – Jammu Kashmir ka Rahan Sahan in Hindi – खान पान
प्राचीनकाल में कश्मीर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। माना जाता है कि यहाँ पर भगवान शिव की पत्नी देवी सती रहा करती थीं और उस समय ये वादी पूरी पानी से ढकी हुई थी। यहाँ एक राक्षस नाग भी रहता था, जिसे वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर हरा दिया और ज़्यादातर पानी वितस्ता (झेलम) नदी के रास्ते बहा दिया। इस तरह इस जगह का नाम सतीसर से कश्मीर पड़ा। इससे अधिक तर्कसंगत प्रसंग यह है कि इसका वास्तविक नाम कश्यपमर (अथवा कछुओं की झील) था। इसी से कश्मीर नाम निकला।
कश्मीर का इतिहास इन हिंदी Kashmir History in Hindi
कश्मीर का अच्छा-ख़ासा इतिहास कल्हण के ग्रंथ राजतरंगिणी से (और बाद के अन्य लेखकों से) मिलता है। प्राचीन काल में यहाँ हिन्दू आर्य राजाओं का राज था।
मौर्य सम्राट अशोक और कुषाण सम्राट कनिष्क के समय कश्मीर बौद्ध धर्म और संस्कृति का मुख्य केन्द्र बन गया। पूर्व-मध्ययुग में यहाँ के चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य ने एक विशाल साम्राज्य क़ायम कर लिया था। कश्मीर संस्कृत विद्या का विख्यात केन्द्र रहा।
कश्मीर शैवदर्शन भी यहीं पैदा हुआ और पनपा। यहां के महान मनीषीयों में पतञ्जलि, दृढबल, वसुगुप्त, आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, कल्हण, क्षेमराज आदि हैं। यह धारणा है कि विष्णुधर्मोत्तर पुराण एवं योग वासिष्ठ यहीं लिखे गये।
कश्मीर से कुछ यादगार वस्तुएं ले जानी हों तो यहां कई सरकारी एंपोरियम हैं। अखरोट की लकड़ी के हस्तशिल्प, पेपरमेशी के शो-पीस, लेदर की वस्तुएं, कालीन, पश्मीना एवं जामावार शाल, केसर, क्रिकेट बैट और सूखे मेवे आदि पर्यटकों की खरीदारी की खास वस्तुएं हैं। लाल चौक क्षेत्र में हर तरह के शॉपिंग केंद्र है। खानपान के शौकीन पर्यटक कश्मीरी भोजन का स्वाद जरूर लेना चाहेंगे। बाजवान कश्मीरी भोजन का एक खास अंदाज है। इसमें कई कोर्स होते है जिनमें रोगन जोश, तबकमाज, मेथी, गुस्तान आदि डिश शामिल होती है। स्वीट डिश के रूप में फिरनी प्रस्तुत की जाती है। अंत में कहवा अर्थात कश्मीरी चाय के साथ वाजवान पूर्ण होता है।
जम्मू और कश्मीर का रहन सहन Kashmir Ke Baare Mein Hindi me
कश्मीर घाटी के मूल निवासी कश्मीरी पण्डित, हिन्दू शैव मत के मानने वाले हैं। भारत की आज़ादी के समय कश्मीर की वादी में लगभग 15 % हिन्दू थे और बाकी मुसल्मान। आतंकवाद शुरु होने के बाद आज कश्मीर में सिर्फ़ 4 % हिन्दू बाकी रह गये हैं, यानि कि वादी में 96 % मुस्लिम बहुमत है। ज़्यादातर मुसल्मानों और हिन्दुओं का आपसी बर्ताव भाईचारे वाला ही होता है। कश्मीरी लोग ख़ुद काफ़ी ख़ूबसूरत खूबसूरत होते है|
यहाँ की सूफ़ी-परम्परा बहुत विख्यात है, जो कश्मीरी इस्लाम को परम्परागत शिया और सुन्नी इस्लाम से थोड़ा अलग और हिन्दुओं के प्रति सहिष्णु बना देती है। कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीरी पंडित कहा जाता है और वो सभी ब्राह्मण माने जाते हैं। सभी कश्मीरियों को कश्मीर की संस्कृति, यानि कि कश्मीरियत पर बहुत नाज़ है। वादी-ए-कश्मीर अपने चिनार के पेड़ों, कश्मीरी सेब, केसर (ज़ाफ़रान, जिसे संस्कृत में काश्मीरम् भी कहा जाता है), पश्मीना ऊन और शॉलों पर की गयी कढ़ाई, गलीचों और देसी चाय (कहवा) के लिये दुनिया भर में मशहूर है।
यहाँ का सन्तूर भी बहुत प्रसिद्ध है। आतंकवाद से बशक इन सभी को और कश्मीरियों की खुशहाली को बहद धक्का लगा है। कश्मीरी व्यंजन भारत भर में बहुत ही लज़ीज़ माने जाते हैं। नोट करें कि ज़्यादातर कश्मीरी पंडित मांस खाते हैं। कश्मीरी पंडितों के मांसाहारी व्यंजन हैं : नेनी (बकरे के ग़ोश्त का) क़लिया, नेनी रोग़न जोश, नेनी यख़ियन (यख़नी), मच्छ (मछली), इत्यादि। कश्मीरी पंडितों के शाकाहारी व्यंजन हैं : चमनी क़लिया, वेथ चमन, दम ओलुव (आलू दम), राज़्मा गोआग्जी, चोएक वंगन (बैंगन), इत्यादि। कश्मीरी मुसल्मानों के (मांसाहारी) व्यंजन हैं : कई तरह के कबाब और कोफ़्ते, रिश्ताबा, गोश्ताबा, इत्यादि। परम्परागत कश्मीरी दावत को वाज़वान कहा जाता है। कहते हैं कि हर कश्मीरी की ये ख़्वाहिश होती है कि ज़िन्दगी में एक बार, कम से कम, अपने दोस्तों के लिये वो वाज़वान परोसे। कुल मिलाकर कहा जये तो कश्मीर हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों का अनूठा मिश्रण है।
Dharti Ka Swarg Kashmir Essay in Hindi
धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर ग्रेट हिमालयन रेंज और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित है। यहां की नैसर्गिक छटा हर मौसम में एक अलग रूप लिए नजर आती है। गर्मी में यहां हरियाली का आंचल फैला दिखता है, तो सेबों का मौसम आते ही लाल सेब बागान में झूलते नजर आने लगते हैं। सर्दियों में हर तरफ बर्फकी चादर फैलने लगती है और पतझड शुरू होते ही जर्द चिनार का सुनहरा सौंदर्य मन मोहने लगता है। पर्यटकों को सम्मोहित करने के लिए यहां बहुत कुछ है। शायद इसी कारण देश-विदेश के पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। वैसे प्रसिद्ध लेखक थॉमस मूर की पुस्तक लैला रूख ने कश्मीर की ऐसी ही खूबियों का परिचय पूरे विश्व से कराया था।
इस ब्लॉग के निर्माता हिमांशु सक्सैना हैं जो बुलन्दशहर जिले के निवासी हैं | इन्हें अपनी मातृ भाषा हिन्दी से काफी प्रेम है इसलिये इन्हे हिन्दी में लिखने का शोक भी है | लोगो के दिमाग में आज भी यही बात जुबान पर रहती है कि जो कुछ भी है वो इंग्लिश से है, इस बात को गलत साबित करने के उद्देश्य से ही इन्होने इस ब्लॉग का निर्माण किया है |
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