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Paryavaran Ka Mahatva Nibandh in Hindi Essay : पर्यावरण का हमारे जीवन में क्या महत्व है?

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पर्यावरण का महत्व बताइए- Paryavaran ka Mahatva

Nibandh in Hindi Essay

पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। “पर्या” जो हमारे चारों ओर है, और “आवरण” जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं।

सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय का संबंध भी होता है।

पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे: चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि।

पर्यावरण किसे कहते हैं? पर्यावरण का अर्थ- परिभाषा Meaning of Paryavaran in Hindi

सामान्यतः पर्यावरण को मनुष्य के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है और मनुष्य को एक अलग इकाई और उसके चारों ओर व्याप्त अन्य समस्त चीजों को उसका पर्यावरण घोषित कर दिया जाता है। किन्तु यहाँ यह भी ध्यातव है कि अभी भी इस धरती पर बहुत सी मानव सभ्यताएँ हैं जो अपने को पर्यावरण से अलग नहीं मानतीं और उनकी नज़र में समस्त प्रकृति एक ही इकाई है जिसका मनुष्य भी एक हिस्सा है। वस्तुतः मनुष्य को पर्यावरण से अलग मानने वाले वे हैं जो तकनीकी रूप से विकसित हैं और विज्ञान और तकनीक के व्यापक प्रयोग से अपनी प्राकृतिक दशाओं में काफ़ी बदलाव लाने में समर्थ हैं।

पर्यावरण के प्रकार

मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण को दो प्रखण्डों में विभाजित किया जाता है – प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और मानव निर्मित पर्यावरण। हालाँकि पूर्ण रूप से प्राकृतिक पर्यावरण (जिसमें मानव हस्तक्षेप बिल्कुल न हुआ हो) या पूर्ण रूपेण मानव निर्मित पर्यावरण (जिसमें सब कुछ मनुष्य निर्मित हो), कहीं नहीं पाए जाते। यह विभाजन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और दशाओं में मानव हस्तक्षेप की मात्रा की अधिकता और न्यूनता का द्योतक मात्र है। पारिस्थितिकी और पर्यावरण भूगोल में प्राकृतिक पर्यावरण शब्द का प्रयोग पर्यावास (habitat) के लिये भी होता है।

तकनीकी मानव द्वारा आर्थिक उद्देश्य और जीवन में विलासिता के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रकृति के साथ व्यापक छेड़छाड़ के क्रियाकलापों ने प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलन नष्ट किया है, जिससे प्राकृतिक व्यवस्था या प्रणाली के अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न हो गया है। इस तरह की समस्याएँ पर्यावरणीय अवनयन कहलाती हैं।

पर्यावरणीय समस्याएँ जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर रही हैं और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की चर्चा है। मनुष्य वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से अपने द्वारा किये गये परिवर्तनों से नुकसान को कितना कम करने में सक्षम है, आर्थिक और राजनैतिक हितों की टकराव में पर्यावरण पर कितना ध्यान दिया जा रहा है और मनुष्यता अपने पर्यावरण के प्रति कितनी जागरूक है, यह आज के ज्वलंत प्रश्न हैं।

आज पर्यावरण एक जरूरी सवाल बल्कि ज्वलंत मुद्या बना हुआ है लेकिन आज लोगों में इसे लेकर कोई जागरूकता नहीं है। ग्रामीण समाज को छोड़ दे तो भी महानगरीय जीवन में इसके प्रति खास उत्सुकता नहीं पाई जाती। परिणामस्वरूप पर्यावरण सुरक्षा महज एक सरकारी एजेण्डा ही बन कर रह गया है। जबकि यह पूरे समाज से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध रखने वाला सवाल है। जब तक इसके प्रति लोगों में एक स्वाभाविक लगाव पैदा नहीं होता पर्यावरण संरक्षण एक दूर का सपना ही बना रहेगा।

पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से है। अपने परिवेश में हम तरह-तरह के जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तथा अन्य सजीव-निर्जीव वस्तुएँ पाते हैं। ये सब मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे-भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान, आदि में विषय के मौलिक सिद्धान्तों तथा उनसे सम्बन्ध प्रायोगिक विषयों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु आज की आवश्यकता यह है कि पर्यावरण के विस्तृत अध्ययन के साथ-साथ इससे सम्बन्धित व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया जाए। आधुनिक समाज को पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं की शिक्षा व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिए। साथ ही इससे निपटने के बचावकारी उपायों की जानकारी भी आवश्यक है। आज के मशीनी युग में हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं। प्रदूषण एक अभिशाप के रूप में सम्पूर्ण पर्यावरण को नष्ट करने के लिए हमारे सामने खड़ा है। सम्पूर्ण विश्व एक गम्भीर चुनौती के दौर से गुजर रहा है। यद्यपि हमारे पास पर्यावरण सम्बन्धी पाठ्य-सामग्री की कमी है तथापि सन्दर्भ सामग्री की कमी नहीं है। वास्तव में आज पर्यावरण से सम्बद्ध उपलब्ध ज्ञान को व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है ताकि समस्या को जनमानस सहज रूप से समझ सके। ऐसी विषम परिस्थिति में समाज को उसके कर्त्तव्य तथा दायित्व का एहसास होना आवश्यक है। इस प्रकार समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है। वास्तव में सजीव तथा निर्जीव दो संघटक मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं। वायु, जल तथा भूमि निर्जीव घटकों में आते हैं जबकि जन्तु-जगत तथा पादप-जगत से मिलकर सजीवों का निर्माण होता है। इन संघटकों के मध्य एक महत्वपूर्ण रिश्ता यह है कि अपने जीवन-निर्वाह के लिए परस्पर निर्भर रहते हैं। जीव-जगत में यद्यपि मानव सबसे अधिक सचेतन एवं संवेदनशील प्राणी है तथापि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वह अन्य जीव-जन्तुओं, पादप, वायु, जल तथा भूमि पर निर्भर रहता है। मानव के परिवेश में पाए जाने वाले जीव-जन्तु पादप, वायु, जल तथा भूमि पर्यावरण की संरचना करते है।

प्रकृति और पर्यावरण पर निबंध Paryavaran Nibandh in Hindi_ पर्यावरण का महत्व पर निबंध इन हिंदी

मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अगर हमारी जलवायु में थोडा सा भी परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर दिखने लगता है। अगर ठंड ज्यादा पडती है तो हमें सर्दी हो जाती है लेकिन अगर गर्मी ज्यादा पडती है तो हम सहन नहीं कर पाते हैं।

पर्यावरण प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर बढने , पोषण और नष्ट करने में सहायता करती है। प्राकृतिक पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महान भूमिका निभाता है और यह मनुष्य , जानवरों और अन्य जीवित चीजों को विकसित करने में मदद करता है। मनुष्य अपनी कुछ बुरी आदतों और गतिविधियों से अपने पर्यावरण को प्रभावित कर रहे हैं।

हर साल दुनिया भर के लोग 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस – World Environment Day के रूप में मनाते हैं। हमने कभी जाना हैं की इस दिवस को हम क्यों मनाते हैं। इस दिन का जश्न मनाने के पीछे का उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है ताकि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सकारात्मक कदम उठा सकें।

एक शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के लिए एक स्वच्छ वातावरण बहुत जरूरी है लेकिन हमारे पर्यावरण मनुष्यों की कुछ लापरवाही के कारण दिन में गंदे हो रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे सभी को विशेष रूप से हमारे बच्चों के बारे में पता होना चाहिए। -“पर्यावरण की रक्षा, दुनियाँ की सुरक्षा!”

माना जाता है कि हमारी धरती ही ब्रह्मांड में एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसमें जीवन अस्तित्व के लिए आवश्यक वातावरण है। पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाने वाली सभी प्राकृतिक चीजें जैसे पानी, हवा, धूप, भूमि, अग्नि, जंगल, जानवर, पौधे शामिल हैं।

पर्यावरण के बिना हम यहाँ जीवन का कल्पना भी नहीं कर सकते हैं इसलिए हमें अपने पर्यावरण को सुरक्षित और स्वच्छ रखना चाहिए। यह दुनिया के हर व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है। हर किसी को आगे आकर पर्यावरण सुरक्षा के लिए अभियान में शामिल होना चाहिए।

मनुष्य धरती पर प्रकृति द्वारा बनाए गए सबसे बुद्धिमान प्राणी के रूप में माना जाता है, इसलिए उसे ब्रह्मांड में उन चीजों को जानने की बहुत उत्सुकता है जो उसे तकनीकी उन्नति की तरफ़ ले जाए।

हर किसी के जीवन में इस तरह की तकनीकी प्रगति ने धरती पर जीवन को दिन-दिन खतरे में डाल दिया और हमारा पर्यावरण धीरे-धीरे नष्ट हो रहा है। यहां तक कि यह मनुष्य, पशु, पौधों और अन्य जीवित चीजों के स्वास्थ्य खराब असर होना शुरू हो गया है। जैसे हानिकारक रसायनों का उपयोग करके कृत्रिम रूप से खेती करके हम जो दैनिक अनाज खाने खाते हैं। औद्योगिक कंपनियों के धुएं से रोज प्राकृतिक हवा को प्रदूषित किया जाता है जो हमारे स्वास्थ्य को काफी हद तक नुकसानदायक है क्योंकि हम इसे हर पल में सांस लेते हैं।

ऐसे व्यस्त, भीड़ भरे और उन्नत जीवन में हमें इस प्रकार की छोटी बुरी आदतों पर हररोज ध्यान रखना चाहिए। हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग केवल हमारी स्वार्थ के लिए गलत तरीके से नहीं करना चाहिए और हमारी विनाशकारी इच्छाओं को पूरा नहीं करना चाहिए। हमें अपने जीवन की उन्नति के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकियों को विकसित करना और विकसित करना चाहिए, लेकिन हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में हमारे पर्यावरण को वैसे भी बर्बाद नहीं करेगा।

पर्यावरण की समस्या और समाधान-पर्यावरण प्रदुषण के कारण-

पर्यावरण प्रदुषण के बहुत से कारण है जिससे हमारा पर्यावरण बहुत अधिक प्रभावित होता है। मानव द्वारा निर्मित फैक्ट्री से निकलने वाले अवशेष हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। लेकिन यह भी संभव नहीं है कि इस विकास की दौड़ में हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अपने विकास को नजर अंदाज कर दें।

हम कुछ बातों को ध्यान में रखकर अपने पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं। कारखानों की चिमनियाँ नीची लगी होती हैं जिसकी वजह से उनसे निकलने वाला धुआं हमारे चारों ओर वातावरण में फैल जाता है। आज के समय में घर में इतने सदस्य नहीं होते हैं जितने अधिक वाहन होते हैं। घर का छोटा बच्चा भी साइकिल की जगह पर गाड़ी चलाना पसंद करता है।

मिलों , कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों से बाहर निकलने वाले धुएं तथा विषैली गैसों ने पर्यावरण की समस्या को उत्पन्न कर दिया है। बसों , करों , ट्रकों , टंपुओं से इतना अधिक धुआं और विषैली गैसी निकलती है जिससे प्रदुषण की समस्या और अधिक गंभीर होती जा रही है।

बहती नदियों के पानी में सीवर की गंदगी इस तरह से मिल जाती है जिससे मनुष्यों और पशुओं के पीने का पानी गंदा हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप दोनों निर्बलता , बीमारी तथा गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं। बड़े-बड़े नगरों में झोंपड़ियों के निवासियों ने इस समस्या को बहुत अधिक गंभीर कर दिया है।

शहरीकरण और आधुनिकीकरण पर्यावरण प्रदुषण के प्रमुख कारण हैं। मनुष्य द्वारा अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण को नजर अंदाज करना एक बहुत ही आम बात हो गई है। मनुष्य बिना कुछ सोचे समझे पेड़ों को काटता जा रहा है लेकिन वह यह नहीं सोचता है कि जीवन जीने के लिए वायु हमें इन्हीं पेड़ों से प्राप्त होती है।

बढती हुई आबादी हमारे पर्यावरण के प्रदुषण का एक बहुत ही प्रमुख कारण है। जिस देश में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है उस देश में रहने और खाने की समस्या भी बढती जा रही है। मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण को महत्व नहीं देता है लेकिन वह भूल जाता है कि बिना पर्यावरण के उसकी सुख-सुविधाएँ कुछ समय के लिए ही हैं।

पर्यावरण की रक्षा के उपाय

हम जिस पर्यावरण में रहते हैं वह बहुत तेजी से दूषित होता जा रहा है। हमें आवश्यकता है कि हम अपने पर्यावरण की देखरेख और संरक्षण ठीक तरीके से करें। हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की परम्परा बहुत पहले से चली आ रही है। हमारे पूर्वजों ने विभिन्न जीवों को देवी देवताओं की सवारी मानकर और विभिन्न वृक्षों में देवी देवताओं का निवास मानकर उनका संरक्षण किया है।

पर्यावरण संरक्षण मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों को सुधारने की एक प्रक्रिया होती है जिसके दो उद्देश्य होते हैं। पहला उन क्रियाकलापों का प्रबंधन होता है जिनकी वजह से पर्यावरण को हानि होती है। दूसरा मानव की जीवन शैली को पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप आचरणपरक बनाना जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रह सके।

कारखानों से निकलने वाले धुएं और पदार्थों का उचित प्रकार से निस्तारण किया जाना चाहिए। प्रदुषण और गंदगी की समस्या का निदान बहुत अधिक आवश्यक है ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके। सभी मिलों , कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों में अभिलम्ब प्रदुषण नियंत्रण के लिए संयत्र लगाए जाने चाहिएँ।

इन संयंत्रों के द्वारा धुएं और विषैली गैसों को सीधे आकाश में ही निष्काषित किया जाना चाहिए। बड़े नगरों में बसों , कारों , ट्रकों , स्कूटरों के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और उनकी नियमित रूप से चेकिंग भी करवानी चाहिए। हरे पौधों का रोपण किया जाना चाहिए तथा बड़े-बड़े पेड़ों की सुरक्षा की जानी चाहिए।

शांतिपूर्ण जीवन के लिए शोरगुल वाली ध्वनि को सिमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी पुरुषों , महिलाओं और बच्चों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटान के लिए सख्त कानूनों का प्रावधान होना चाहिए। संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जनजागरण किया जाना चाहिए।

कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम प्रयोग करना चाहिए। वन प्रबंधन से वनों के क्षेत्रों में वृद्धि करनी चाहिए। विकास योजनाओं को आरम्भ करने से पहले पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आंकलन कर लेना चाहिए। मनुष्य को अपने प्रयासों से इस समस्या को कम करने की कोशिश करनी चाहिये।

जो कारखाने स्थापित हो चुके हैं उन्हें तो दूसरे स्थान पर स्थापित नहीं किया जा सकता है लेकिन अब सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो भी नए कारखाने खुलें वो शहर से दूर हो। कारखानों द्वारा किया गया प्रदुषण शहर की जनता को प्रभावित न करे। मनुष्य को अपने द्वारा किए गए प्रदुषण को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

जितना हो सके वाहनों का कम प्रयोग करना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करके भी इस समस्या को कम किया जा सकता है। हमारे वैज्ञानिकों द्वारा भी धुएं को काबू करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिएँ। जंगलों की कटाई पर सख्त सजा सुनाई जानी चाहिए तथा नए पेड़ लगाए जाने चाहिएँ।

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